9789392017117
LeftWord Books 2025
Language: Hindi
209 Pages
5.5 X 8.5 Inches
Price INR 395.0 Not Available
Book Club Price INR 276.5 USD
यह तो सब जानते हैं कि 1927 में बाबासाहेब आंबेडकर ने महाराष्ट्र के महाड में सार्वजनिक तालाब से दलितों के पानी लेने के अधिकार को लेकर एक ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था। लेकिन यह कम लोग जानते हैं कि बाबसाहब को महाड लाने वाले रामचंद्र मोरे थे। यह पुस्तक उनके जीवन की कहानी कहती है।
रामचंद्र बाबाजी मोरे (1 मार्च 1903–11 मई 1972) की आपबीती में उनके बहुत सारे अनुभव, अलग-अलग तरह के किए गए काम, थियेटर के साथ जुड़ी उनकी खट्टी-मीठी यादें और मुंबई के उभरते मज़दूर वर्ग, जिसका बड़ा हिस्सा दलितों का था, के बारे में विस्तृत और बहुत ही दिलचस्प बातें हैं। इसकी शुरुआत में ही महाड में दलितों की पीने के पानी की समस्या और इससे निपटने के लिए उठाए गए उनके ठोस क़दमों का प्रसंग आता है और इसके आख़िरी पन्नों में बाबासाहेब आंबेडकर के साथ उनकी तमाम मुलाक़ातों की रोचक तफ़सील है।
आगे चल कर रामचंद्र मोरे कम्युनिस्ट आंदोलन की ओर आकर्षित हुए और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के सदस्य बने। ग़ज़ब की बात है कि बाबासाहेब ने बड़े ही सहज तरीक़े से इस फ़ैसले को स्वीकार किया। मोरे के प्रति उनका प्रेम भाव कभी कम नहीं हुआ। दोनों के बीच समन्वय कभी नहीं टूटा। मोरे ने भी आजीवन बाबासाहेब को अपना नेता ही माना। पार्टी में विभाजन के बाद मोरे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने।
कॉमरेड मोरे की जीवनी अधूरी रही उनके देहांत की वजह से। इस काम को पूरा किया उनके बेटे सत्येंद्र मोरे ने, जो ख़ुद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे और मुंबई के धारावी क्षेत्र से विधान सभा के सदस्य।
कम्युनिस्ट और आंबेडकरी आंदोलनों के बीच के पुल थे कॉमरेड आर. बी. मोरे, और यह उनकी अद्भुत और प्रेरक जीवनगाथा है।